समय से पहले पैदा हुआ शिशु
समय से पहले पैदा हुआ शिशु:-
- 1. 37 सप्ताह (258 दिन) के पूर्ण गर्भावधि से पहले जन्म लेनेवाले शिशु।
- 2. भारत में जन्म लेने वाले 10-12% बच्चे समय से पहले होते हैं।
- 3. भारत में नवजातों की मौत का 35% कारण समय से पहले जन्मे बच्चे का होता है।
- 4. यह शिशु संरचनात्मक और शारीरिक रूप से अपरिपक्व होते हैं और इस कारण उनकी मृत्यु दर अधिक होती है।
शारीरिक प्रतिकूल परिस्थिति: -
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1. केंद्रीय तंत्रिका प्रणाली : - समय से पहले होने वाले बच्चों में अपरिपक्व केंद्रीय तंत्रिका प्रणाली होता है। वे सुस्त होतें हैं और उनके पास चूसने और निगलने की क्षमता कम होती है, इसलिए, उन्हें खिलाने में कठिनाई होती है। इन शिशु को मस्तिष्क में अंतर्निलयी- परानिलयी रक्तस्राव और पीलिया से होनेवाला मस्तिष्क पर नुकसान का खतरा होता हैं।
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2. आँख: - रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (आर.ओ.पी.) एक रोके जाने योग्य संभावित अंधापन कराने वाला विकार है जो मुख्य रूप से समय से पहले जन्मे बच्चों की दोनों आँखों को प्रभावित करता है।
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3. स्वश्न प्रणाली: - स्वसन दर अनियमित होने का खतरा होता है। सांस बीच-बीच में स्वयं रुक जाती है और साथ ही शरीर में धड़कन रुकने का खतरा होता है। खांसने की प्रक्रिया का विकास नहीं होने की वजह से निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है।
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4. जठरांत्र प्रणाली: - असमन्वय से चूसने , पेट की क्षमता कम , ग्रासनली अवमामाशयसयोजन की अक्षमता और खाशी की प्रक्रिया का विकास नहीं होने के कारण उलटी होना और छाती में दूध जाने की समस्या हो सकती है। आंतों की अपरिपक्वता के कारण उन्हें पेट में गड़बड़ी और अपच का खतरा होता है। लिवर अपरिपक़्व होने से पीलिया हो सकता है। उनके पास कम ग्लाइकोजन (शरीर में संचित अन्य भंडार) स्टोर होता है, जिसकी वजह से शरीर में ग्लूकोस की कमी हो सकती है।
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5. शारीरिक तापमान: - अपरिपक्व शिशु में वसा और उपचर्म वसा कम होती है। शरीर में गर्मी का उत्पादन कम होता है। इसलिए वे हाइपोथर्मिया (शरीर ठंडा होना) के लिए अधिक प्रवृत्त हैं।
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6. हृदय प्रणाली: गर्भकालीन रक्त संचार की नस जन्म उपरांत भी बंद नहीं हो सकता है जिसको पेटेंट डक्टस आर्टेरिओसिस कहते है। बंद होने की प्रक्रिया देरी से भी हो सकती है। परिधीय परिसंचरण अपर्याप्त होती है। मस्तिष्क में रक्त प्रवाह के खराब असमन्वय के कारण मस्तिष्क के अंदर रक्तस्राव हो सकता है।
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7. अपरिपक्व किडनी: - किडनी नलिकाओं की सांद्रता की क्षमता कम हो जाती है। इस कारण बच्चों में अमलोपचय होने की सम्भावना बढ़ जाती हैं। 8. रास प्रक्रिया (मेटाबोलिक) के विकार: - ग्लूकोस , कैल्शियम , प्रोटीन , ऑक्सीजन की कमी, शरीर में अमल की अधिकता, जैसी समस्याओ के विकसित होने की अधिक संभावना होती है।
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9. पोषण की कमी: - समयपूर्व शिशुओं की पोषण संबंधी आवश्यकताएं अधिक होती हैं क्योंकि प्रसव के बाद की वृद्धि की जरूरत 10 गुना तक हो सकती है। 1 किलो का अपरिपक़्व सामान्य गर्भकालीन उम्र में पैदा होने वाले बच्चे के समान 2 वर्ष में 10 किलो वजन का होने के लिए 10 गुना तक बढ़ना होता है। अंतर्गर्भाशयी पोषक तत्वों का अधिग्रहण मुख्य रूप से तीसरे तिमाही के बाद के भाग में होता है, इसलिए अपरिपक्व शिशुओं के जन्म के समय शरीर में कम भंडार होते हैं। इसलिए, उन्हें लोहे के साथ विभिन्न पोषक तत्वों के पूरक की आवश्यकता होती है।
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10. संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है: - अपरिपक़्व शिशुओं में सामान्य नवजात शिशु की तुलना में संक्रमण होने की संभावना 3-10 गुना अधिक होती है। उनके पास निम्न स्तर के आईजीजी एंटीबॉडीज, अपर्याप्त शारीरिक प्रतिरक्षा होते हैं।